तुम्हारे पिघले-पिघले से लबों पर
कशिश की एक बूँद कब से ठहरी हुई,
मेरे लबों की प्यास बढ़ा रही है!
तुम्हारी गीली रेशमी ज़ुल्फें जो बंधी है एक दूसरे से
खुलने को बेताब मेरी उँगलियों से,
शर्म के ये परदे गिराने को घटायें छा रही है!
मेरे करीब आने पर तुम्हारी गहराती साँसें और बेसब्र आहें
मेरी साँसों में इत्र तुम्हारी महक का घोल कर,
निशाओं में मदहोशी के जाम छलका रही है!
मेरी हथेलियों की नरमी जब छूती है तुम्हारे कमरबन्द छल्ले
तो तुम्हारे जिस्म की बेहिसाब इठलनें और करवटें,
मेरी हाथों की सख्ती कमर पर और बढ़ा रही है!
तुम्हारे नूर का लिबास पहने इक झोंका इश्क़ का
मेरे दिल पर अक्सर खटखटाता है,
धड़कनें मेरी तुम्हारे ज़िक्र से तेज़ होती जा रही है!
नैनों में घुलते तुम्हारे हूर और हया के शबाब में
मुहब्बत के जाने कितने दरिया समाये है,
इन पलकों के किनारों पर उछलती इशारों की लहरें मेरी बेताबियाँ बढ़ा रही है!
मेरी बाहों में जब टूट जाती है तुम्हारी बाहें
सीने पर कम्पन्न उठता है तुम्हारी साँसों का,
लिपट कर तुम्हारे रूही एहसास मुझे अन्जानी सी कोई कहानी सुना रही है!
तुम्हारे करीब रहकर ये यकीन मिलता है
ज़िन्दगी में ज़िन्दगी का नसीब मिलता है,
बातें तुम्हारी आजकल मेरे दिन और रातों को शबनमी बना रही है!
कुछ तो दास्ताँ है तुम्हारी
जो तुम्हारी आँखें मुझसे कहती जा रही है,
कुछ तो बात है तुम में
जो तुम्हारी तरफ मुझे खींचे जा रही है,
बातें तुम्हारी आजकल मेरे लबों पर करवटें लेती लकीरें बिछा रही है!
~ साहिल