इन्सान की फितरत है हर एक बात पर टिप्पणी करना
अपने नज़रिये में रखकर दुनिया की हर एक आदत को परखना,
खुद पर बीती तो उसे बढ़ा-चढ़ा कर कहना
किसी और पर बीती तो उसे मज़ाक का विषय समझना,
तर्क देना हर एक सवाल पर
जवाब मिले तो उसे तोहमत समझना,
अहमियत यहाँ बस बेवजह की शिकायतों की है
बेहतर इरादों पर हमेशा बेवकूफी की मोहर रखना!
कितनी ख़्वाहिशें जल जाती है हर रोज़
कितने ही ख़्याल धुआँ-धुआँ हो जाते है,
आँसू गिरते है तो कमज़ोरी समझी जाती है
कितने ही कतरे डर-डर के बहते है,
मशीनों के दम पर अब चल रहा है हर कोई यहाँ
आँखों के सामने भी हर चीज़ नज़रअंदाज़ हो जाती है,
रिश्ते है कि बस कुछ पलों में बदल जाते है
अब सफ़र-ऐ-ज़ीस्त की बातें बस कहानियों में कही-सुनी जाती है!
कहना आसान है यहाँ
सुनना कोई पसन्द नहीं करता,
बस इसी कहने और सुनने के फासलों में
अक्सर गिरहें उलझती जाती है,
कड़वा लगेगा, मगर सच कहता हूँ, झूठ ना समझना…
मुश्किल हो चला है किसी पर हक़ जताना, क्योंकि अब इन्सान यहाँ इन्सान सा नहीं लगता!
– Sahil
(August 2018)