ख़्वाबों के बक्से खोलूँ
या लम्हों को पीछे मोडू,
दूर से एक धुँधला सा यार नज़र आता है
वो घर याद आता है!
हवाओं में बहती इमारतों के दरमियाँ
जब सुकून के कुछ पल तोड़ूँ,
निगाहों के रस्ते कुछ पिघलता जाता है
वो घर याद आता है!
सुबह से शाम एक सफ़र चलता है
भीड़ में तन्हा यहाँ हर कोई फिरता है,
जाने कहाँ जाना है किसको
एक ही राह पर मगर फिर भी निकलता है,
ये दिन जब थक-हार कर लौटता है
चार दीवारों में खुद को ढूँढता है,
बड़े अजनबी से ढंग है यहाँ जीने के
ज़िन्दगी से दूर रह कर ज़िन्दगी ढूँढता है,
आलीशान मकानों में अक्सर
सन्नाटा ही साथ आता है,
झूठी तसल्ली से खुद जब थक जाता हूँ
वो घर याद आता है!
एक कमरा है वहाँ, एक छोटा सा कमरा
जिसमे एक गुज़रा हुआ बचपन नज़र आता है,
दीवारें भी कभी पढ़-लिख लिया करती थी
अब वहाँ मकड़ियों का घर नज़र आता है,
एक बूढा सा मेज़ और एक टूटी हुई कुर्सी है
उन पर अब पुराने सामानों का बोझ रखा जाता है,
कुछ किताबों और पन्नों को बाँध कर रखा है एक कोने में
वक़्त के साथ कितना कुछ धूल में मिल जाता है!
वो तकिया जो बचपन के हर राज़ से वाकिफ़ था
अब मुझे पहचानने से कतराता है,
वो चादर जिसने मेरे हर दर्द को छुपाये रखा
उसमे अब ये पैर भी नहीं समाता है,
वो दरवाज़ा जो अक्सर मेरे मूड का शिकार होता था
वो दरवाज़ा भी अब कराहता है,
हर गली मोहल्ले में जो मेरी हमसफ़र बन जाती थी
वो साइकिल का हैंडल भी अब अजीब सा पेश आता है,
कहते है घरवाले सुनसान सा लगता है मेरा वो कमरा अब
मगर मैं जानता हूँ वो मुझे कितना ज़ोर से पुकारता है,
जाने कब भूला दिया उस बचपन को
वो बचपन भी अब मुझसे नज़रें चुराता है,
नाज़ुक कोमल गद्दों में अब नींद तो आ जाती है
मगर सपनों का महल तो उस चारपाई से ही नज़र आता है,
करवट बदल-बदल कर सो लेता हूँ, मगर बेचैन रातों में
वो घर याद आता है!
त्यौहारों में चाहे कोई सजे ना सजे
हर तरफ से वो घर निखर जाता है,
होली के रंगों में रंगीला
और दिवाली की रोशनी से रोशन हो जाता है,
अपनों संग झूमता है
अपनों संग खुशियाँ मनाता है,
वो सिर्फ़ एक ज़रूरत नहीं है जीने की
वो रिश्तों को एक धागे में पिरोना सिखाता है,
वो भी एक सदस्य है परिवार का
शायद इसलिये वो मकान नहीं, घर कहलाता है,
अक्सर जब देखता हूँ आसपास कितना अन्जान है सब कुछ
वो मेरा घर मुझे बहुत याद आता है!
ख़्वाबों के बक्से खोलूँ
या लम्हों को पीछे मोडू,
दूर से एक धुँधला सा यार नज़र आता है
वो घर याद आता है!
हवाओं में बहती इमारतों के दरमियाँ
जब सुकून के कुछ पल तोड़ूँ,
निगाहों के रस्ते कुछ पिघलता जाता है
वो घर याद आता है!
Wish you all a very happy and prosperous Deepawali 🙂 Thanks for reading and inspiring me always! May this Diwali brings joy, smile, pride and success to you and your family!
दीपावली और नववर्ष की हार्दिक शुभकामनाएं।
– Sahil 🙂