शुरुआत से अन्त तक का ये जो सफ़र है
बस इसी के दरमियाँ कहीं ज़िन्दगी है!
कहाँ से शुरू हो कर
जाने कहाँ रुकती है,
राह के हर मोड़ पर
टूट कर फिर जुड़ती है,
हर बार टूट कर जुड़ने में कुछ नया जो जुड़ जाता है
और जो थोड़ा सा छूट जाता है
बस उन टुकडों में ही ज़िन्दगी है!
छोटे-छोटे कदमों से
ख्वाहिशों के फ़लक छूती है,
मासूमियत भरी आँखों से
मोहब्बत के रंग भरती है,
काँधे पर रख कर कुछ कोरे सफ़हे
अन्जाने ही सही एक सफ़र लिखती है,
मिलकर बिछड़ना और फिर से मिलना
जाने कितने पराये अपने करती है,
आसान नहीं है कुछ नया बन जाना
खुद को अक्सर खुद में भर लेती है,
जीने का दस्तूर है इसलिये शायद
किसी तरह हँस कर आगे बढ़ लेती है,
शुरुआत ज़रूरी है, और ये एहसास भी
क्योंकि शुरू-शुरू में ज़रूरतों का एहसासों में ढलना बहुत ज़रूरी होता है!
मगर ये जो अन्त है
ये बड़ा ही आसान है,
किसी गहरे सवाल का
बहुत ही वाजिब सा जवाब है,
कभी टूट जाता है, या छूट जाता है
इस अन्त में अक्सर कोई ख़्याल सो जाता है,
ना ही किसी की ज़रूरत पड़ती है
ना ही किसी से घबराता है,
और अन्त में तो किसे परवाह
एहसास भी भटकते हुए खो जाता है,
इस अन्त में बहुत छूट है
बेवजह के रिवाज़ों से ये बहुत दूर है,
बस एक किनारा है
जिसके आगे कुछ नहीं,
जो है, बस यहीं तक है
और यहीं तक रहेगा,
अन्त अनुयायी है शुरुआत का, और निकम्मा भी
क्योंकि अन्त में अन्त के सिवाय कुछ ज़रूरी नहीं होता!
शुरुआत से अन्त तक का ये जो सफ़र है
बस इसी के दरमियाँ कहीं ज़िन्दगी है!
-Sahil
(10th August, 2018 – Friday)