भूलना तुम्हें अच्छा नहीं लगता।

तुम कहती हो मुझसे
कि मैं भुला दूँ तुम्हें,
मगर ये भूल जाती हो तुम
भूलना तुम्हें मुझे अच्छा नहीं लगता।।।

लबों पर जो ज़ायका आता था तुम्हारी हंसी का
आँचल में तुम्हारे एक सुकून मिलता था,
छू कर गुजरता वो बचपना जो तुम्हारी मुस्कुराहट से
उस पल मे जैसे खुशनुमा एक ज़माना गुज़रता था।
अब ये होंठ अक्सर सिले से रहते है
बेवजह हँस लेना अब अच्छा नहीं लगता,
भूल जाती हो तुम
भूलना तुम्हें अच्छा नहीं लगता।।।

हाथों में लिए हाथ चले थे साथ साथ
एक नए सफर पर लिखने एक नया अंजाम,
तेरे साथ थी हर राह छोटी और हर मुश्किल आसान
लिख रहे थे दो दिलो के सफरनामा का बखान।
अब तन्हा उन राहो पर अकेला हूं
तेरे बिना सफर करना अच्छा नहीं लगता,
भूल जाती हो तुम,
भूलना तुम्हे अच्छा नहीं लगता।।।

दिन में सोता हूं, रातों मे जागता हूं
ख़्वाबों में तुमसे ही बातें करता हूं,
ये आँखें अब तरसती हैं तेरी एक झलक पाने को
मैं इन्हें तस्वीरों से बहला लेता हूं।
किसीसे मिलना अब अच्छा नहीं लगता
जिस दिन में तू ना हो
उस दिन में उठना अब अच्छा नहीं लगता,
भूल जाती हो तुम,
भूलना तुम्हें अच्छा नहीं लगता।।।

तुम कहती हो मुझसे
कि मैं भुला दूँ तुम्हें,
मगर ये भूल जाती हो तुम
भूलना तुम्हें मुझे अच्छा नहीं लगता।।।


~ साहिल

Naina

ये नैना, वफ़ा करते है
दिल की गहराइयों के गहरे राज़ बयाँ करते है,
एहसासों की सीलन से उधड़े किनारों पर
ये नैना, इकरार करते है!

जब लफ्ज़ साथ ना दे पाये,
एहसासों से सीने में तड़प उठ आये,
और कुछ यादें उथल-पुथल मचाये,
तब अक्सर ये नैना बातें करते है!

पलकों पर रखकर ज़िन्दगी के लम्हें,
कतरों से सींच कर अनकही हसरतें,
कोई अन्जानी दास्ताँ की लहरों में बह कर
अश्क़ों के किनारों पर ये नैना शाम करते है!

ये नैनों के नीचे की गहरी लकीरों में
अफसानों के कारवां बसते है,
जो बह कर छूट गए थे एक रोज़
अब वहीं बैठे इन नैनों में जान भरते है!

कभी जो जलती लौ की तरह
निहारते थे बिन झपके ये नैना,
आज उड़ती हुई हवाओं में झुका कर नज़रें
ये नैना बहाने हज़ार करते है!

ख़्वाबों की ईटों से
जो उम्मीदों के महल बनाते थे,
आज ढूंढते है कुछ शामियाने
ज़रूरतों की चादर ओढ़े ये नैना शबों को निसार करते है!

टूटते सितारों को देखकर
जो दुआएं माँगते थे ये नैना,
कुछ पुरानी मन्नतों के आसमान में
खुद टूट कर नयी ख्वाहिशों में बँट जाते है!

जिन चेहरों को देखकर मन भर लिया करते
और जिनकी बातों में दिन-रात काट लिया करते,
आज उन्हीं चेहरों से ये नैना नज़रें चुराये
छुपने के ठिकाने ढूंढते रहते है!

जब कोई ना हो पास
रख कर पलकों पर कुछ एहसास,
अक्सर बह कर तन्हाइयों के समंदर में
ये नैना किनारे ढूंढते रहते है!

जिन बाहों में रख कर नमी की परतें
ये नैना कतरों को पनाह देते थे,
अब रो लेते है आँखें मीचे
उन बाहों के आँचल को अब तरसा करते है!

ये नैना, वफ़ा करते है
दिल की गहराइयों के गहरे राज़ बयाँ करते है,
एहसासों की सीलन से उधड़े किनारों पर
ये नैना, इकरार करते है!

~ साहिल
(17th March’ 2017 – Friday)

Rango Ka Mela || Happy Holi!

रंगो के इस मेले में
नये रंग उड़ने दो,
भूल कर सारे शिक़वे पूराने
प्यार के रंग भरने दो!

लाल लाल गुलाल में
खुद को लाल रंगने दो,
सारे पुराने रंगो पर
आज नयी लाली चढ़ने दो!

सारे ग़मों के कतरें पुराने
आज ख़ुशी में ढलने दो,
खुशियों के बहाने ले कर
आज मन बहलने दो!

पिचकारी की नोंक पर
आज खुद को भीगने दो,
मन से मैले रंग बहा कर
आज मन को सींचने दो!

आँखों से आँखें चुरा कर
लबों पर सजावट रहने दो,
कतरों को पानी के साथ
आज रंगो में छुप कर बहने दो!

सारी बुराइयाँ, सारी नफरत
आग में झुलसने दो,
इंसानियत के नये रंगो की
दुनिया में सेज सजने दो!

खेल खेल में इस मेले में
खेल के रंग उड़ने दो,
होली के इस मौके पर
रंग संग मन रमने दो!

रंगो के इस मेले में
नये रंग उड़ने दो,
भूल कर सारे शिक़वे पूराने
प्यार के रंग भरने दो!

~ साहिल
(13th March’ 2017)

Wish you all a very happy and colorful holi 🙂 Let your life be full of colors of love, happiness and passion!

Khaamoshi!

Vriksha ki shaakhon par jhuke hue patte,
Jab hawa ke jhonke se gir jate hai…
Wo patte khaamoshi hai!

Jab baadal garaj kar baraste nahi,
Aur dharti pyaasi reh jati hai…
Wo pyaas khaamoshi hai!

Swayam ka saaya bhi saath chhod deta hai,
Jab jeevan uss andheri nagri se guzarta hai…
Wo parcchai khaamoshi hai!

Dil ke raaste se hote hue jo mukh se na nikalkar,
Aankhon ke zariye aansuon me beh jae…
Wo lafz khaamoshi hai!

Wo samandar ka gehraapan khaamoshi hai…
Wo jalti lakdiyon par tap rahi rooh khaamoshi hai…
Wo chuppi, wo nafrat, wo zillat khaamoshi hai…
Bejaan sapno ki wo talab bhi ek khaamoshi hai!

Darr hai kahi ek aag bankar wo sabko jala na jae…
Udte parindo ko raund kar gira na jae…
Aur khilte gulzaar me kahi akaal na le aae…
Jo zinda hai khaamoshi kisi ki khaamoshi me aaj bhi…
Wo zindagi khud ek khaamoshi hai!!!

~ Sahil
(21st March’ 2016)

Zindagi – Ek Kahaani!

लफ्ज़ दर लफ्ज़ एक कहानी लिखती जाती है,
ज़िन्दगी के सफहों को वक़्त की स्याही रंगती जाती है!

हाथों की लकीरों से किस्मत पेंच लड़ाती है,
ज़िन्दगी की बाज़ी में अक्सर ख़्वाहिशें हार जाती है!

उम्र के कारावास में कोई सज़ा काटती जाती है,
ज़िन्दगी ज़माने की बेड़ियों में कैदी बन कर गुज़रती जाती है!

बचपन की मासूमियत पर झुर्रियाँ उगने आती है,
ज़िन्दगी खेल-खेल में खुद एक खेल बन जाती है!

सुबह-शाम बस ठोकरें खा कर संभलती जाती है,
ज़िन्दगी साँसों की जद-ओ-जहद में जीना भूल जाती है!

लहरों की गोद में अक्सर गोते खाती खो जाती है,
ज़िन्दगी दो किनारों के दरमियाँ अक्सर तैरती जाती है!

सपनों की खर्ची पर ज़रूरतें पूरी होती जाती है,
ज़िन्दगी में ज़रूरतों की पर्ची बढ़ती चली जाती है!

बैठ कर इक शाम अब सफहा पलटती जाती है,
ज़िन्दगी यादों के कारवाँ में लम्हें ढूंढती जाती है!

बिखरी स्याही के पन्नों में से कोई तस्वीर नज़र आती है,
ज़िन्दगी लफ्ज़ दर लफ्ज़ एक कहानी लिखती जाती है!

~ साहिल
(3rd Mar’ 17 – Friday)