अनकही

कभी-कभी अक्सर एक अजनबी सी खामोशी रह जाती है,
बातें बहुत होती है मगर, वो लबों पर खो जाती है!

कुछ ज़ख्म ऐसे होते है, जो हरे ही रहते है,
वक़्त की चाल जाने अनजाने, ये घांव गहरे कर जाती है!
कभी-कभी बस मुस्कुरा लेना ही लाज़िमी लगता है,
बिन कहे बहुत सी बातें अनजान हो जाती है!
ज़रूरी होता है जीवन में कुछ दर्द छुपा लेना,
रिश्तों के सागर में कुछ कश्तियाँ डूब ही जाती है!

निगाहों का झुक जाना अक्सर शर्म का लिबास नहीं होता,
कोई झाँक ना ले इनकी गहराइयों में,
शायद इसलिए भी ये झुक जाती है!
भीग लेता हूँ बारिश में आजकल,
आँखों की नमी अब इन्हीं के सहारे
छुपते-छुपाते बह जाती है!

ये जान लिया है कि कोई नहीं जाना
शायद इसलिए अब ज़िन्दगी यूँही चलती चली जाती है!
मिल लेता हूं साहिलों से, शामें गुज़ार लेता हूं,
गीली रेत में जो यादों के निशान रख लेता हूं तो,
ये लहरें उन्हें अपने संग ले जाती है!

कभी-कभी अक्सर एक अजनबी सी खामोशी रह जाती है,
बातें बहुत होती है मगर, वो लबों पर खो जाती है!

~ साहिल
(29th January, 2017)

One thought on “अनकही

Leave a comment