तू ही जीवन, तू ही सर्वनाश है!

तू उठ, तू चल, 
तू किसलिये निराश है,
तू सती नहीं, तू आग है,
तू ही जीवन, तू ही सर्वनाश है!

तू रुक नहीं, तू डर नहीं,
तू सिमट ना जा यूँ यहीं,
ये वक़्त का सैलाब है
हौसले से टूट जायेगा,
तेरे इरादों में भी जब,
क्रोध बहता जायेगा
क्रोध बहता जायेगा!

ये बेड़ियाँ समाज की
तुझे तोड़ने का शस्त्र है,
सहनशीलता की मिसाल तू
तू पापियों का काल है,
तू लड़, तेरा हक़ तुझे
एक दिन हासिल हो जायेगा
एक दिन हासिल हो जायेगा!

तू उठ, तू चल, 
तू किसलिये निराश है,
तू सती नहीं, तू आग है,
तू ही जीवन, तू ही सर्वनाश है!

वाकिफ नहीं ये जहाँ तुझसे,
तेरे भीतर जो आघात है,
कमज़ोर समझ ना तू खुद को,
तुझमे दुर्गा का आवास है,
दिखा दे इस जहाँ को
तुझमे भी वो मशाल है
तुझमेे भी वो मशाल है!

गलत नहीं है तू जहा
तो क्यों वहाँ त्रस्त है,
तेरी पलकों पर अश्क़ क्यों,
क्यों तुझे दर्द है,
तू इस कदर कदम बढ़ा,
कि गुनाह भी कतरायेगा,
कि गुनाह भी कतरायेगा!

सच की राह पर तू चल,
वक़्त भी इक रोज़ तेरी राह अपनायेगा,
तेरा हौसला, तेरी काबिलियत,
एक प्रेरणा बन दिखलायेग…
कि तेरी बनाई राह पर
ये डर भी कप-कपायेगा
ये डर भी कप-कपायेगा!

तू उठ, तू चल, 
तू किसलिये निराश है,
तू सती नहीं, तू आग है,
तू ही जीवन, तू ही सर्वनाश है!

– साहिल

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